जीवन में जरा सी विषम परिस्थिति आने पर हम लोगों का ईश्वर पर विश्वास डगमगाने लगता है। "हम ने तो किसी का कभी बुरा नहीं किया फिर भगवन हमारे साथ ये अन्याय क्यों कर रहा है? हमारा तो भगवान ने भी साथ छोड़ दिया !" इत्यादि इत्यादि प्रलाप हम करना शुरू कर देते हैं। अगर यह विषम परिस्थितियाँ और अधिक कठिन हो जायें तो लगता है सारा उसी भगवान का षडयंत्र है, हम अपने को ईश्वर के ही विरुद्ध खड़ा पाते हैं ।
गुरु गोबिंद सिंह जब मुगलों के विरुद्ध संघर्षरत थे तो चमकौर साहिब के किले में औरंगजेब की फौज ने गुरूजी को उन के केवल चालीस साथियों सहित घेर लिया। उन के दो तरुण बेटे अजीत और जुझार इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। अनेक अन्य साथी लड़ाई में काम आए। जिस किले में गुरु जी और उन के शिष्यों ने मोर्चा बना रखा था उस का मुग़ल सेना के हस्तगत होना तय था। अपने बचे हुए पाँच शिष्यों के तीव्र आग्रह पर गुरु गोबिंद जी ने अनमने रातों-रात वेश बदल उस किले से निकल जाना स्वीकार किया। किले से निकल दिसम्बर की कड़कती ठण्ड में, बहुत दिनों तक गुरूजी जंगलो में अकेले भटकते रहे। मुगलों के विरुद्ध अपने लंबे संघर्ष में, अपने पिता, अपने चारों पुत्रों और अनगिनत शिष्यों के बलिदानों के बावजूद राष्ट्र, समाज और धर्म की अस्मिता विदेशी आक्रान्तायों के पैरों तले कुचली जा रही थी। आशा की कोई किरण नहीं थी। मुगलों के विरुद्ध हिंदुस्तान का युद्ध पराजय की ओर अग्रसर था, उस कठोर समय में गुरूजी की मानसिक परिस्थिति क्या रही होगी, यह उनके श्रीप्रभु को लिखे कई शब्दों में प्रर्दशित होता है। जिन में से एक मुझे बहुत प्रिये है।
मित्तर प्यारे नू, हाल मुरीदां दा कहिना ॥
तुध बिन रोग रजाईयां दा औडन, नाग निवासां दे रहिना ॥
सूल सुराही खंजर प्याला बिंग कसाइयां दा सहिना ॥
याराडे दा सानु सथ्थर चंगा पठ खेड़यां दा रहिना ॥
मेरी सीमित क्षमतानुसार इस में गुरुजी अपने उन साथियों को जो प्रभु चरणों में लीन हो गए को स्मरण कर उन से भगवान् को अपनी दशा बताने का अनुरोध कर रहे हैं : प्रिये मित्र (प्रभु) को भक्तों की दशा बताना। आप (प्रभु) बिना रजाई रोग और घर जैसे नागों के बीच रहना है । सुराही कांटे और प्याले खंजर से तेजधार हैं, (आप की अनदेखी) जैसे कसाई के हवाले होना। मित्रों (प्रभु) के घास-फूस के बिस्तर के आगे हमें महल भी आग की भट्ठी जैसे हैं।
इतनी घोर विषमता में भी उनका विश्वास ईश्वर पर अटल रहा। 'नानक नाम जहाज़ है' फ़िल्म में मोहम्मद रफी ने अपनी मोहक आवाज़ में इस शब्द को बहुत सुंदर गाया है। जिन्दगी में सब कुछ खो कर भी अपनी आशा और विश्वास बनाये रखने का गुरु गोबिंद जी का संदेश सुन मन को बहुत संबल मिलता है।
8 comments:
यह जगत तो वैतरणी समान है और गुरु गोविन्द सिन्ह जी जैसे श्रद्धावान ही पार लगते-लगाते हैँ।
गुरु नानक के कई बड़े सरल और गम्भीर रास्ते हैं - जीवन जीने के। वे प्रकाश में लाये जाने चाहियें। मसलन एक मुझे याद आता है कि अपना भोजन बांट कर खायें (वण्ड छकना?)।
आपसे सहमत .गुरु गोबिंद जी से जीवन जीने की जो प्रेरणा मिलती है ,उसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती .
guru 'dashmesh' jaise mahapurush aur 'vanshdanee' itihas aur aadhyatm dono ko badal dete hain .
bada achcha laga .
wah! narayan narayan
सभी महापुरूष हमें जीवन को बेहतर बनाने की प्रेरणा देते हैं।
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S.B.A.
TSALIIM.
प्रेरणाप्रद।
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सम्मोहन के यंत्र
5000 सालों में दुनिया का अंत
आपकी अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है।
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SBAI TSALIIM
महापुरुषों का जीवन हमारे लिये आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। गीत और शब्दों के लिये धन्यवाद!
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