Tuesday, December 16, 2008

'जाति ऊँची रहे हमारी'

चेन्नई के एक विधि कॉलेज में हाल ही में हुए छात्रों के जातीय संघर्ष का विडियो देख मैं सन्न रह गया। कारण चाहे जो भी रहा हो, अपराधी या पीड़ित चाहे किसी भी जाति का थे वो दृश्य बहुत ही हृदयविदारक थे। मैं अपने को काफी मजबूत हृदय का मानता हूँ और सामान्यत: रक्त देख कर मेरा मन विचलित नहीं होता परन्तु इन दृश्यों को मैं पूरा नहीं देख पाया। आधे में ही मुझे पानी पीने को उठाना पड़ा। कोई भी सुशिक्षित (वो भी विधि के छात्र) व्यक्ति इतना निर्मम, क्रूर और जंगली हो सकता है, विश्वास नहीं होता। बर्बरता में आदमयुग को भी पछाड़ दिया भारत के इन होनहार भविष्य के वकीलों ने।



पिटने वालों में अगर भारतीय छात्रों की जगह आतंकवादी होते तो शायद मुझे तसल्ली होती परन्तु दुःख तो इस बात का है कि यहाँ तो दोनों पक्ष ही 'भारत का भविष्य' थे। आपस में ही लड़ मरने वाले इन भारतीय तरुणों के लिए किसी ऐ के ४७ वाले आतंकवादी की क्या जरूरत है ? भारत को तबाह करने के लिए ऐसे दो चार कॉलेज और उन के ऐसे विद्यार्थी ही पर्याप्त हैं। इस पशुवृति वाले विद्यार्थी आगे चल न्याय अन्याय का विचार कर समाज का उत्थान करेंगे या दिन रात ऐसी ही घटनायों की कामना और सहयोग कर अपनी चांदी कूटने की जुगाड़, अंधे को भी दिखायी देता है। कॉलेज के नाम मात्र के लिए वहशी कुत्तों की तरह लड़ने वाले यह होनहार अपने नाम तक को तो सार्थक कर नहीं सकते यह तह है।


इस शर्मसार करने वाली घटना का दूसरा पक्ष चेन्नई की पुलिस है। पुलिस के दलबल के सामने ही छात्र हत्या का प्रयास करते रहे और पुलिस अधिकारी संतोष की साँस लेते शायद प्रिंसिपल के फ़ोन की प्रतीक्षा करते रहे। पर इन पुलिस वालों को भी अपराधी क्यों ठहराना, इन लोगों का भी कोई दोष नहीं । आख़िर यह लोग भी तो ऐसे ही कॉलेज स्कूलों की पैदाइश हैं। लड़ने वाले इन विद्यार्थियों का भविष्य का चरित्र हम इन पुलिस अधिकारीयों में साफ साफ देख सकते हैं। 'देश और समाज जाए भाड़ में, मेरा घर पूरा होना चाहिए' इन का धेयय रहने वाला है।


आखिरकार इस सब का दोषी कौन है ? हमारे स्कूल कॉलेज में क्या शिक्षा दी जा रही है? इस की चिंता शायद किसी को नहीं है। माता-पिता को पैसे कमाने वाली मशीन चाहिए, राजनीतिज्ञों को शिक्षा को भगवेकरण से बचाने की चिंता है और शिक्षाविदों को राजनीतिज्ञों की चापलूसी कर अपना घर चलाने की। एक ही चक्र घूम रहा है और इस चक्र में हमारी भावी पीढियां अफसर तो बन रहीं हैं पर मानव नहीं।



( हालाँकि मैं सलाह तो नहीं देता पर अगर कोई देखना चाहे तो ये शोर्य गाथा यहाँ उपलब्ध है। )



Tuesday, December 9, 2008

एक और 'स्वर्णभूमि'

अनायास ही अगर हम किसी से "स्वर्णभूमि" अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बारे पूछें तो अधिकाँश लोग भारत के ही किसी शहर की सोचेगें। परन्तु जानकार लोग जानते हैं कि यह हवाई अड्डा भारत में नहीं बल्कि थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक का हवाई अड्डा है जो कि सन् २००६ में निर्मित हुआ था।


परन्तु मैं बात इस के 'स्वर्णभूमि' नाम की विशेषता की नहीं बल्कि हाल में ही इस के प्रवेश द्वार के सामने स्थापित एक कलाकृति की करना चाहता हूँ। यह सुंदर कलाकृति है, हमारे "विष्णु पुराण" से लिए गए "समुद्र मंथन" का दृश्य। विभिन्न रंगों से चित्रित यह विशाल प्रदर्शनी बहुत मनमोहक है। विष्णु पुराण, श्रीमद भागवत और महाभारत में वर्णन के अनुसार जिस समय असुरों और दैत्यों की शक्ति का उत्थान हो रहा था और देवता वैभवहीन हो रहे थे, उस समय भगवन नारायण के निर्देशानुसार देवों ने असुरों से समझोता कर क्षीर सागर को मथ अमृतपान का निश्चय किया। मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को नेती बना स्वयं प्रभु विष्णु कच्छप बन मंदराचल के आधार बने तथा देवगण अमृतपान कर पाये। यह सम्पूर्ण दृश्य हम उस एक कलाकृति में देख सकते हैं जिसे देख वहां से गुजरने वाले लोग मंत्रमुग्द्ध हो ठिठक जातें हैं।







परन्तु जो हैरान करने वाली बात है वो यह कि थाईलैंड की मुख्य जनसँख्या हिन्दु नही अपितु मुस्लिम है । यह मुसलमान अपने पूर्वजों के हिन्दु होने का मान रखते हैं तथा हिन्दु संस्कृति को अपनी ही धरोहर मानते हैं। केवल थाईलैंड ही नहीं बल्कि मलेशिया, कम्बोडिया या इंडोनेशिया में भी हिन्दु संस्कृति का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। कम्बोडिया का अंगकोर वाट और इंडोनेशिया की गरुड़ एयरलाइन्स के बारे में हम सब जानते ही है। इतना ही नहीं सामान्य रूप से भी उन समाजों में रामायण महाभारत के चरित्रों की झलक मिलती है और उन पर चित्रित नृत्य या नाटक वहां कभी भी देखे जा सकतें हैं।



परन्तु यक्ष प्रशन यह है कि क्या ऐसा कोई चित्र या कलाकृति भारत के किसी सरकारी भवन की शोभा बड़ा सकती है ? निश्चित रूप से नहीं। "ऐसा कोई भी प्रयास भारत की 'धर्मनिरपेक्ष' संप्रभुता पर खतरा होगा" मानने वालों की ही भारत में बोलबाला है। यह तथाकथित 'धर्मनिरपेक्ष' लोग ही हैं जिन ने भारत के मुसलमानों को हिन्दु संस्कृति का भय दिखा अपनी दूकान चला रखी है। और इसी कारण ही भारत का अधिकांश मुस्लिम समाज अपने पूर्वजों के हिन्दु होने के बावजूद अपने को हिन्दु संस्कृति से दूर पाता है। क्या कारण है कि जिस हिन्दु संस्कृति से थाईलैंड का मुस्लिम समाज अपने को गौरवान्वित महसूस करता है (कोई भी शर्मसार करने वाली वस्तु थाई समाज ने स्वर्णभूमि हवाई अड्डे पर न लगाई होती) उसी संस्कृति को भारत का मुस्लिम समाज अपने लिए विष मानता है? शायद न भी मानता हो परन्तु कम से कम हमारे देश का वातावरण ऐसा ही मानने को मजबूर करता है।


(चित्रों के लिए विभिन्न छायाकारों का आभार ! )