Sunday, March 29, 2009

श्री व्रत कथा:

यूँ तो सारे साल ही माता मनसा देवी मन्दिर में भक्तगणों का आना लगा रहता है परन्तु नवरात्रों के दस दिनों में दर्शनार्थियों की संख्या लाखों में पहुँच जाती है। भांत भांत के लोग एक - एक किलोमीटर लम्बी पंक्तियों में घंटों अपनी बारी की प्रतीक्षा करते। समाज के हर वर्ग के लोगों में माता मनसा देवी मन्दिर की बहुत मान्यता है। घर के पास ही यह मन्दिर होने के कारण सड़क पर आते जाते मैं इस दुनिया को देखता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं नास्तिक हूँ या आज कल के फैशन के अनुसार, मैं agnostic (भगवन के विषय में भ्रमित पढ़े लिखे लोग) हूँ । 'उस' पर मेरी पूर्ण आस्था है। परन्तु मैं ज्यादा कर्म-कांड नहीं कर सकता। मन्दिर या किसी तीर्थ पर जाना मेरे लिए बहुत कष्टदायक है और इस का मुख्य कारण है हमारी मंदिरों व् तीर्थस्थलों का रख-रखाव। खैर यहाँ विषय दूसरा है, मैं बात कर रहा था मनसा देवी मन्दिर की (और यह मन्दिर बहुत व्यवस्थित और साफ़-सुथरा है) और वहां आने वाले भक्तों की। आने वाले सामान्य भक्तों में एक अच्छी संख्या व्रतधारियों की रहती है और यह व्रत होता है अपने घर से मन्दिर तक दंडवत प्रणाम करते आने का। अपनी किसी मनोकामना की प्राप्ति हेतु श्रद्धालु यह प्रण लेते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर (कई बार अग्रिम कर के तौर पर भी) अपने घर से गर्भगृह तक कई किलोमीटर लगातार दंडवत प्रणाम करते आते। स्वाभाविक रूप से इन लोगों को पंक्ति में खड़ा नही होना पड़ता है। इस दंडवत प्रणाम की प्रक्रिया शुरू होती है अपने घर की चौखट से जहाँ पर श्रद्धालु पूजा अर्चना कर मन्दिर की और मुख कर साक्षात् प्रणाम करता तथा लेटे लेटे ही अपने हाथ में पकड़े चाक से एक लकीर लगाता, अब खड़े हो वो दो-एक कदम चल उस लकीर पर आता और फ़िर से दंडवत प्रणाम कर वैसी ही लकीर फिर बनाता। इस प्रकार हजारों उठक बैठक की शरीर तोड़ देने वाली मशक्कत से यह लोग मन्दिर पहुँचते। इस पूरी रस्म के दौरान इन भक्तों के कोई न कोई रिश्तेदार इनके साथ चलते हैं। बहुत बार तो कई तरुण केवल अपनी शारीरिक क्षमता परखने के लिए यह व्रत ले लेते हैं।


अब यह लोग श्रद्धा से यह व्रत लें या किसी मनोकामना पूर्ति की इच्छा के स्वार्थ हेतु या फिर पूर्ण हुयी किसी इच्छा के प्रतिदेय हेतु, मेरा हृदय इन लोगों के विश्वास प्रति सम्मान से भर जाता है। कारण चाहे जो भी रहे, यह कोई सरल राह नहीं है। एक और यह लोग हैं और दूसरी और मेरे जैसे। पिछले कई वर्षों से मैं नवरात्रों के सारे व्रत रखता आया हूँ। परन्तु इन उपवासों में अध्यात्म भाव कम और स्वास्थ्य सम्बन्धी कारण अधिक हैं। सारे साल मैं कोई उपवास नहीं करता इस लिए यह सोच कर कि इन व्रतों से शरीर के पाचन प्रणाली को थोड़ा आराम मिल जाएगा मैं यह व्रत नियमित रखता रहा। परन्तु यह बहुत मजेदार सत्य है कि उतनी वसा, प्रोटीन मैं सामान्य दिनों में नहीं लेता हूँगा जितनी इन सात दिनों में। मेरा वजन इन नवरात्रों में निश्चित ही बढ़ जाता होगा। माँ और पत्नी चिंता करती है की सारा दिन बिना खाने के सर दुखेगा इसलिये सुबह नाश्ते में पत्नी बिना प्याज के आलू की सूखी सब्जी की बाटी (बाटी कटोरी की बड़ी बहन को कहतें हैं) दही के साथ परोसती है। इस हल्के से नाश्ते के पूर्व दो बार की चाय के साथ व्रत वाले चिप्स या लड्डू का जिक्र करना शायद ठीक रहेगा। मेरे न न करने के बाद भी दोपहर को मेरे ऑफिस से किसी लड़के को बुला मेरे लिए कट्टु के आटे की मेथी वाली एक या दो रोटियां ढेर सारे मक्खन (मक्खन इसलिये क्योंकि माँ कहती है कट्टु का आटा बहुत खुश्क होता है) सहित भेज दिया जाता है। अरे हाँ, व्रत में चूँकि फलों का बहुत महत्त्व है इसलिये इन रोटियों के साथ एक आध सेब या केला जरूर रहता है। अब शाम को ऑफिस से लौटने पर (बेटा व्रत के कारण सारे दिन का भूखा होगा ) फलों की चाट या कट्टू के पकोडे चाय के साथ मेरी सारे दिन की क्षुधा शांत करने का प्रयास करते हैं। अब आख़िर इन व्रतों में भोजन तो केवल रात्रि का ही मान्य है इस लिए रात के भोजन में कभी आलू की तरी वाली सब्जी तो कभी पालक का साग किसी न किसी अन्य सूखी सब्जी के साथ (निश्चित ही बिना प्याज के), कट्टु के आटे के रोटियों, अदरक की चटनी (जितनी मात्रा अदरक की उतनी ही मात्रा में देसी घी ), दही, और सब्जी के मात्रा से मैच करती मक्खन की बाटी (मक्खन इसलिये क्योंकि........जी हाँ आप जानते हैं) के साथ खाने को रहता है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पंजाब में व्रत रखना कितना कठिन है।



पंजाब की अपनी परम्पराएँ हैं। लोग व्रत रखतें हैं न खाने का परन्तु लगता है यहाँ व्रत लिया जाता है खाने का। और पंजाब में खाने का अपना महत्त्व है। खाने के बिना तो सारा जग सूना है। पंजाब और पंजाब के खाने की चर्चा अब किसी और दिन। व्रत चल रहें हैं और मैंने सुबह से 'कुछ अधिक' खाया नहीं है रात्रि भोजन का समय हो गया है। आख़िर व्रत तोड़ना है भाई।


Saturday, March 21, 2009

चार्वाक सत्य जगत मिथ्या !

मानव जीवन का असली आनंद पाने का रहस्य जानने के लिए अधिकाँश लोग अध्यात्म की मुड़ जाते हैं कुछ अधिक जिज्ञासा वाले हिमालय की और प्रस्थान कर जाते हैं। परन्तु कुछ लोग इतने भाग्यशाली होते हैं जिन्हें इस रहस्य की चाबी घर बैठे ही मिल जाती है। सूद साहब ऐसे अति दुर्लभ भाग्यशाली लोगों में से एक हैं। इस में भी घोर आश्चर्य की बात यह है कि ब्रह्म-ज्ञान धारा का यह रस केवल सूद साहब ही नहीं अपितु उन के सारे परिवार ने चख रखा है। जिस संसार के गहन दु:खों को देख सिद्धार्थ बुद्ध हो गए कम्बखत वो दुःख सूद साहब का आज तक एक बाल भी न टेढा कर पाए। सांसारिक कष्टों से यह विरक्ति उन ने किस अघोरी की सेवा कर पायी है यह रहस्य हमारे लिए अनबूझा है।


दुनिया इधर से उधर हो जाए या यह कहना उचित होगा कि उन की दुनिया इधर से उधर करने का कोई लाख प्रयास कर ले परन्तु सूद साहब कभी टस से मस नहीं हुए। वो आज भी हमेशा की तरह हर सुबह अपने घर के बाहर सड़क पर किसी गाड़ी से टेक लगा बड़ी तन्मयता से अपनी छाती के सफ़ेद बाल उखाड़ते और कश लगाते आती जाती काम वाली बाईओं को घूरते। मान-अपमान, अपेक्षा-उपेक्षा और उचित-अनुचित के गणित से वो बहुत ऊपर उठ चुके हैं। अपने मन से कोई बात तुंरत धो देने की योगिक शक्ति उन ने सिद्ध कर रखी है। हमारे जैसे तुच्छ लोगों की तरह नहीं कि किसी ने 'ओये' कह दिया तो दस दिन तक मुंह लटकाए बैठे हैं। सूद साहब के घर हजारों बार लोग-बाग़ आकर सूद साहब को उन की माताजी या बहनजी का स्मरण करा चले जाते परन्तु सूद साहब किसी का बूरा न मानते। मानते होते तो उन की पुनरावृत्ति न होने देते पर यहाँ तो यह क्रम अनवरत जारी रहता है। सूद साहब की नजर में ये वो सांसारिक भोगों से लिप्त लोग हैं जो उस माया को भुला नहीं पाते जो माया उन्होंने गलती से कभी सूद साहब को सोंप दी थी। वो अज्ञानी लोग यह नहीं समझ पाते थे कि सूद साहब वो माया अपने मन मस्तिस्क से कभी की धो चुकें हैं। इन अज्ञानी लोगों की लिस्ट में राशन वाला बनिया, धोबी, दूध वाला, गाड़ी धोने वाला, गाड़ी मरम्मत वाला, कई व्यापारी, कई सरकारी कर्मचारी, काम वाली बाई आदि आदि हर जाति धर्म तथा समाज के हर वर्ग के लोग शामिल हैं। सूद साहब किसी के साथ भेद-भावः नहीं करते तथा हर किसी का समान भावः से पैसा मारते।


अगर कोई यह समझे कि शायद मैं सूद साहब से खार खाता हूँ और उन की विवशता का उपहास का रहा हूँ तो मैं यह बताना उचित समझता हूँ कि सूद साहब के घर में किसी चीज कि कमी नहीं हैं। दो गाडियां, दो कमाऊ बेटे, लाखों का अपना फ्लैट, लैपटॉप, लान, बड़ा टीवी, छोटे मोबाइल, डिजायनर कपड़े और यहाँ तक की डिजायनर कुत्ता भी है। महर्षि चार्वाक के महान सिद्धांत, "यावेत जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत' का ऐसा कठिन पालन मैंने आज तक न देखा न सुना। सूद साहब का व्यापार आज तक किसी को समझ नहीं आया, उन का आफिस तो है परन्तु किस चीज का, यह उन के आफिस के पड़ोसी भी नहीं जानते। उन को जानने वाले लोग उन का जिक्र आते ही स्वत: अपने को मुस्कराता पाते। जितना मैं समझ पाया सूद साहब की असली प्रेरणा उन की अपनी पत्नी थी जो समाज के सारे विरोध, तानों और गाली-गलोच को मन से धो देने में सूद साहब की बहुत सहायता करती। इस के अतिरिक्त जो प्रेरणा सूद साहब की पत्नी न दे पाती उस के लिए सूद साहब ने अलग से व्यवस्था कर रखी थी।


आज तक कभी सूद साहब के घर से सोसाएटी का मासिक शुल्क कभी नहीं आया था। उन ने नाम के नोटिस सोसायटी के सुचना पट्ट पर सालों से नियमित रूप से चिपके रहते । परन्तु यह तो सौ-दो सौ की छोटी सी बात थी, हैरानी तो तब हुए जब हमारी सोसायटी के प्रबुद्ध सदस्यों ने जो सदैव भारतीय राजनीती में भ्रष्टाचार से खिन्न रहते, प्रशासन में साफ सुथरी छवि वाले लोगों की मांग करते थे , मिसेज सूद को सोसायटी के वाइस प्रसीडेंट पद की नियुक्ति दे दी। नियमित रूप से मासिक शुल्क वालों के लिए इस से बड़ा तमाचा क्या हो सकता था? अब मिसेज सूद दनदनाती चलती और व्यवस्था ठीक करने का भाषण देती। एक बार एक बड़ी मजेदार बात हुयी। मैं अपने एक व्यापारिक पार्टी के पास उस के आफिस बैठा था जब उस ने मुझे एक पत्रिका देखने की लिए दी। उस वर्ष शहर में हुए व्यापारिक मेले में उन के स्टाल के चित्र उस पत्रिका में थे। पत्रिका देखते देखते मैंने एक चित्र में उन के स्टाल पर सूद साहब को खड़े पाया। मैंने अपनी स्वत: वाली मुस्कान दबाते उस व्यक्ति से पुछा कि यह आदमी केवल दर्शक है या कुछ और। मेरा इतना कहना था कि उन साहब ने चाय का पुन: आदेश दिया तथा मुझे आधा घंटा और बैठना पड़ा।


दूसरों पर मुस्कराते और सूद साहब के पड़ोसी हुए मुझे दस- बारह साल हो गए। इन दस सालों में मैंने कैसे अपनी माया उन से बचा रखी थी मैं जानता हूँ। जाने कैसे कैसे बहाने बना मैं उन का मुझ से कोई आर्थिक व्यवहार करने का कोई भी तरीका नहीं चलने दे रहा था। परन्तु बकरे की अम्मा कब तक खैर मानती । मेरा अपना पैसा बचाने का प्रयास उन के मेरा पैसा मारने के प्रण से कमजोर निकला। दो महीने पहले वो मेरे घर पालथी मार मुझे कुछ व्यापारिक विक्रय करने के लिए मना ले गए। मैं इस अहसास के साथ की शायद मेरे से लिहाज कर वो कुछ शर्म रखेंगे मैंने उन्हें उन की इच्छानुसार सामान दे दिया और वो मेरे हाथ दो दिन की तारीख का चैक पकड़ा गए। आज दो महीने बाद भी जब मेरा कोई कर्मचारी वो चैक ले बैंक जाता है तो बैंक का टैलर उसे देख स्वत: मुस्कुरा देता है।


अभी अभी ताजा ख़बर आयी कि कल शाम दो तीन दूध वाले मिल कर सूद साहब के घर से कुछ बर्तन उठा ले गए। अपने महीनो के पैसे न मिलने के कारण। परन्तु सूद साहब आज सुबह भी अपने सफ़ेद बाल उखाड़ते वहीँ खड़े थे और मिसेज सूद जमादार को सफाई ठीक से न करने पर सोसाईटी से निकलने की धमकी दे रही थी।


"चार्वाक सत्य जगत मिथ्या " !!


Sunday, March 15, 2009

'चाँद मेरा दिल'

'घूम घुमा गधी फिर पीपल नीचे ही आ गयी न।' उस ने जैसे कोई घोषणा की हो। हालाँकि अपने उपन्यास पढ़ते पढ़ते नाश्ता करते मैं उस का तमकना न देख पाया। 'तुम्हारा भी कोई भरोसा नहीं है..................' काफी देर से वो हमेशा की तरह कुछ बड़बड़ कर रही थी और मैं हमेशा की तरह खाली हूँ - हूँ कर अपना कर्तव्य पूरा कर रहा था। मेरी थाली में पटके गए परांठे ने अब मुझे उस की बात्तों को ध्यान से सुनने को मजबूर कर दिया। अगर मैं उस की और ध्यान न देता तो निश्चित ही अगला परांठा और भी जोर से गिरने वाला था। गुस्से में आवाज के साथ साथ डायनिंग टेबल से रसोई तक की उस की चाल भी काफी तेज हो गयी थी। "...........................आख़िर मर्द हो।" मैंने सुना।

मैंने अब उपन्यास बंद कर अपने ऐसे क्रिया-कलापों का हिसाब लगना शुरू किया जिस के बदले उस के यह अग्नि-बाण हो सकते थे। परन्तु मुझे ऐसी कोई हरकत ध्यान न आयी कि जिस की बात्तें सुनना अभी बाकी हों। 'अरी भाग्यवान, हुआ क्या ? ' मैंने अन्तत: पुछा। उस ने मेरी और ऐसे देखा जैसे मैं सब जानते हुए भी अनजान बन रहा हूँ। 'अब बतायो भी, क्या हो गया, और जरा सब्जी दे दो' मैंने सहजता से बोला। "आखिरकार पत्नी ही काम आती है" उस ने जैसे कोई किला जीतने के बाद सूचना दी हो। "जो यह तुम ज्यादा गलैमरस औरतों के पीछे भागते हो न, आखिर मुंह ही काला होता है।" अब वो मुझे ऐसे समझा रही थी जैसे प्राथमिक कक्षा की टीचर बच्चे को कोई अक्षर समझा रही हो। मेरा दिल जोर से धड़का, मेरा ऐसे कौन सा चक्कर था जिस के बारे में मुझे ही ख़बर न थी। 'अरे तुम क्या कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा" मैंने झुंझला कर कहा। "हाँ हाँ तुम्हे कोई बात क्यों समझ आने लगी, वैसे तो बड़े अपडेटिड बनते हो , सारा दिन अख़बारों में सर दे रखते हो, पर यह बात समझ नहीं आ रही" उस ने मेरा पलस्तर उखाड़ना शुरू कर दिया था। "अरे मेरी आशकी का कोई फसाना किसी अखबार में छप गया क्या ?" मेरा धैर्य अब जवाब दे रहा था। "तुम्हारा फसाना भी छप जाएगा किसी दिन, आजकल बहुत सज-धज कर जाते हो" उस ने त्योरी चढ़ा ललिता पवार जैसे ताना मारा। "मैं तो हमेशा ही सजा-धजा रहता हूँ, इस में क्या है ?" टेबल से उठते मैंने कहा। "हाँ हाँ, हमेशा ही सजे रहते हो कि क्या पता कब कौन सी टकरा जाए।" मेरे पीछे पीछे वो बाथरूम तक आ गई, स्पष्ट था वो विषय समाप्त करने के मूड में नहीं थी। "अरे मेरे ऐसे भाग्य कहाँ जो कोई हसीना टकरा जाए" हाथ धोते धोते मैंने उसे चिढाने के लिए कहा। "ज्यादा उड़ो मत, जिन के ऐसे भाग्य हैं उन पर क्या बीतती है, जानते हो ? उस ने कहा। "ओफो, अगर कुछ कहना है तो कहो वरना मैं चला" मैंने धमकाने का थका सा प्रयास किया।



"आख़िर बीवी के पास ही आना पड़ा ना ?" उस ने मुझे चिडाते हुए पूछा ? "किसे?? मुझे?" मैंने झुंझुला कर पूछा । "अरे तुम किस खेत की मूली हो," उस ने मुझे उपेक्षा से देखते हुए कहा, "मैं उस मुह्जले चाँद मोहम्मद की बात कर रही हूँ।" आख़िर उस ने रहस्य से परदा उठाया और मैंने जरा चैन की साँस ली। "मुंह काला करवा कर घर लौटना पड़ा ना ?" उस ने विजेता भाव से एक त्योरी चढा कहा। "ठीक है यार, पर इस में मैं कहाँ फिट होता हूँ, तुम मेरी चढाई क्यों कर रही हो' ?" मैंने तंग आ कर पूछा । 'ये सबक हैं तुम जैसे मर्दों के लिए, कुछ सीखो, पत्नी पत्नी ही होती है, आख़िर उस के पल्लू में ही सर छुपाना पड़ता है। घर गया, मान गया, धर्म गया, सारी उम्र की बनाई साख गयी, अगली ने पैसा बनाया और काम ख़तम।" वो बिना रुके प्रवचन कर रही थी और मैं ऐसे मुंह बनाये बैठा था जैसे किसी सत्संग में कोई लाउड स्पीकर वाला जबरदस्ती कथा सुनता है।



वो बोलती जा रही थी और मैं मन में चन्द्रमोहन को कोस रहा था जिस ने ख़ुद तो मजे लिए और हमारे जैसों के लिए भाषण छोड़ गया। अगर पछताना ही है तो लड्डू खा कर पछताना बेहतर नहीं? वो ठीक कह रही थी बहुत सारे मर्दों ने इस प्रकरण से सबक लिया होगा...................... किस तरह से इस परिस्थिति को आने नहीं देना है और अपना चक्कर चुप-चाप चलाना है। आमीन।