Saturday, October 31, 2009

सिंह का नाद !

MGM की कार्टून फिल्में देखें तो कहानी शुरू होने से पहले MGM अपनी क्लिप दिखाती है जिस में एक घेरे में दहाड़ने को तैयार शेर बैठा होता है और वो दहाड़ता भी है परन्तु एक बिल्ली की आवाज़ में.  बहुत समय पहले लगभग इसी तरह का एक टीवी विज्ञापन खांसी ठीक करने वाली गोली का था जिस में एक शेर किसी मरघिल्ली बिल्ली की म्याऊं म्याऊं करता था.

जब भी हमारे प्रधानमंत्री कहीं भाषण देते सुनायी देतें  हैं यह किस्से मुझे याद आ जातें हैं. कुछ दिन पहले उन्होंने सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को संबोधित किया था और अब कश्मीर में ! बहुत कष्ट होता है उन को बोलते सुन कर !  मेरा उन से कोई राजनैतिक मतभेद नहीं है परन्तु इतनी तो इच्छा होती ही है कि इतने बड़े देश का अग्रसर कोई प्रभावशाली व्यक्तित्व होना चाहिए. स.मो.सि. की दब्बू  आवाज़ से लगता है जैसे कोई निराश महिला प्रसूति गृह से खाली गोद लेटी हुयी लौटी हो. एक तो हम पहले ही आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टवाद आदि आदि से पीड़ित हैं और फिर पीड़ित लीडर की पीड़ित आवाज़ में अपनी पीड़ा उस दुनिया को सुनाने की भोंडी कोशिश करते हैं जिसे हमारी पीड़ा की कोई पीड़ा नहीं है. मेरी अमरीकी लीडरों के प्रति कोई विशेष श्रद्धा नहीं है परन्तु मैं उन के भाषण देने की कला से अवश्य प्रभावित हूँ. अपनी बात से जनता के दिल पर दस्तक देने में वो लोग सक्षम हैं. ९/११ के बाद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के मलबे पर से जार्ज बुश का कहना "we will bring those terrorists to justice" मुझे आज भी याद है. अब उस बात में वो कितना सफल हुए यह चर्चा का विषय हो सकता है पर एक बार तो बुश ने अपनी जनता के दिल में उत्साह भर ही दिया.  क्या हमें अपने किसी लीडर का ऐसा कोई उत्साहवर्द्धक उदघोष याद है ? मुझे तो नहीं ! किसी और की अंग्रेजी में लिखी लिखाई चिठ्ठी   सर झुका कर पढ़ डालने की उबाऊ औपचारिकता में लोग उबासियाँ ही लेते हैं प्रेरणा नहीं ! 

हर किसी के आगे चाहे पकिस्तान हो या बांग्लादेश या चीन या फिर अब नक्सली, बार-बार शांति (यह शांति नहीं कायरता है) की दुहाई दे दे कर उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि यह सिंह अंतर्नाद ही कर सकता है सिंहनाद नहीं ! किसी भी पार्टी का हो परन्तु एक सशक्त, प्रभावशाली और सक्षम नेता हमें चाहिए जो धारा को अपने राष्ट्र की आवश्यकता के अनुसार मोड़ सके न कि उस धारा के साथ बहता जाये.

सुनिए.................! टीवी पर शेर दहाड़ने वाला है.



Friday, October 30, 2009

हमारी छाती तैयार है !




लोगों की हालत सच में बहुत खराब है. कई दर्द से तड़प रहे हैं. बहुत सारों को सीने में जलन और आँखों में चुभन की शिकायत हो रही है. कई कलाकारी के कलाकार 'मुझे नींद न आये' के डुएट गा रहे हैं और कुछ इस से भी बढ कर 'मर जावां' गीत के अंतिम अंतरे पर हैं. पर अब कुछ उम्मीद के बादल दिखाई दे रहें हैं. अब इन दर्द से तड़प रहे सज्जनों के दर्द की दवा का प्रबंध होने के आसार हैं.

इन सबों की तकलीफ का कारण और निदान एक बुड्ढा है. मुयाफ़ कीजियेगा, एक सम्मानित सज्जन हैं जो एक कलाकार हैं. वोह बहुत सुन्दर चित्र बनाते हैं. खासकर लोगों के माँओं के. नहीं नहीं हिंदूं लोगों की माँओं के. परन्तु इन की विशेषता नंगे  चित्रों बनाने में ही है क्योंकि वो ही आर्ट है. हाँ अगर अपनी अम्मा या बहन की पेंटिंग बनानी हो तो आर्ट के मायने बदल जातें हैं. फिर यह उन की एक ऊँगली भी नंगी नहीं दिखाते. सच ही यह बहुत महान कलाकार हैं. कुछ सरफिरे, मार्डन आर्ट से अनपढ़ तथाकथित हिन्दुओं ने इन पर इतने मुकद्दमे कर दिए कि इन साहब को विदेश भागना पड़ा.  उन हिन्दुओं को इतना नहीं पता कि हिन्दु धर्म कितना सहिष्णु है. कोई चाहे जितना भी जूते मरता रहे, अपमान करता रहे, सहिष्णुता के नाम पर उसे दांत निकाल निकाल कर सहते रहो यही हिंदुत्व है. बरखा दत्त सरीखे कितने ही बुद्धिजीवी इन अनपढों को समझाते हैं पर यह धर्म के ठेकेदार अपनी दुकानदारी चमकाते रहते हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह कभी नहीं समझ सकते. बेवकूफ लोग !

अब हुसैन साहब तो अपनी दाढ़ी में हाथ फेरते निकल गए और जिन बुद्धिजीवी लोगों की व्यक्तिगत  माँओं के नंगे चित्र बनाने का वायदा (अडवांस लेकर) वो कर गए थे उन लोगों के दिल हुसैन की याद में तड़प तड़प कर ब्लड प्रेशर बढा रहे थे. वो लोग तब से उन के वापिस आने कई राह देख रहे थे और उन पर मुकद्दमे करने वालों को बददुया देते ठंडी आहें भर रहे थे. भारत की सम्पूर्ण कला हुसैन के बिना किसी कोने में बैठी बलगम वाली खांसी खांस रही थी और भारत की 'सेकुलर' छवी' (जो हिन्दु अस्मिता के अपमान की टानिक पर ही जिन्दा है) धूमिल हो रही थी.  अच्छा है उन्होंने हिन्दु देविओं के ही अश्लील चित्र बनाये और केवल मुकद्दमे ही झेले क्योंकि अगर उन्होंने किसी मुस्लिम या सिख गुरु का ऐसा अपमान किया होता तो मुकद्दमे की नौबत ही न आती और तब न ही किसी बुद्धिजीवी ने आर्ट या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करनी थी.  इतना तो हुसैन भी समझतें हैं इसी लिए तो धडाधड चित्र पर चित्र बनाते रहे.

खैर सुना हैं अब हुसैन साहिब वापिस आ रहें हैं. अब इतने सारे बुद्धिजीवियों  की आत्माविहीन देहों को चैन मिल जायेगा. अब और कई ड्राइंग रूम हुसैन के पेंटिंग से सज अपनी आधुनिकता का परिचय दे इठला सकेंगे. जो हुसैन से चिढतें हैं चिढतें रहें, काले झंडे दिखाते रहें, इस से ज्यादा क्या उखाड़ लेंगे? आखिर
 देश की कला और सेकुलरता जयादा महंगी है. जितनी कीमत सारे हिन्दु धर्म की श्रद्धा की नहीं उस से सौ गुना महंगी तो हुसैन की एक पेंटिंग बिकती है. इस लिए आप भाड़ में जाईये और हुसैन की गजगामिनी बनाने आयी इस षोडशी को आगे आने दीजिये.

 आईये हुसैन जी आईये और हमारी छाती पर मूंग दलिये. क्योंकि हम हिन्दु हैं, सहिष्णु हैं, समझदार हैं. हम कानून अपने हाथ नहीं लेंगे.

कहते हैं समझदार की मौत है.





Sunday, October 4, 2009

शरद पूर्णिमा का चाँद !




कल रात चाँद पूरी तरह दहक रहा था. और दहकता भी क्यों नहीं, आखिर शरद पूर्णिमा का चाँद था. वो भी भला हो बिजली विभाग का जिस ने एक डेढ़ घंटा बिजली गुल कर पूर्णिमा की चांदनी का आनंद दिलवा दिया. बीच बीच में छोटे मोटे बादल भी चंद्रमा के साथ आँख मचोली खेलते रहे पर 'शशि जी' अपनी आभा से हमें सराबोर करते ही रहे. इतना ही नहीं मुझे अपनी छवि सहेजने की भी अनुमति प्रदान की.



आधी रात को कौमुदी में नहाई खीर खाई तो देखा चाँद ने अपना रंग उस खीर में उतार दिया था.