Wednesday, August 20, 2008

छोट्टी बहन !


"आप अपनी सेहत का ध्यान रखा करें। " मेरे मामा ने मेरी मां को आग्रह किया। उस दिन मैंने ध्यान दिया कि वो अपने से छोट्टी बहन को 'आप' कह संबोधित करतें थे। पहले ऐसा नहीं था । पहले वो उन कि छोट्टी बहन ही हुआ करती थीं। मेरी कल्पना में वो भी बचपन में साथ साथ खाते पीते, हँसते खेलते, लड़ते झगड़ते रहे होंगे। छोट्टी बहन की छोट्टी बड़ी जिद्दों को बड़े भाई ने लाड दुलार से पूरा किया होगा। क्या तब भी उन्होंने उसे 'आप' कह पुकारा होगा, मेरे मन ने शुन्य में प्रश्न किया और स्वयं ही उत्तर दिया, 'कभी नहीं'। फिर ये परिवर्तन कब आया होगा ? परन्तु मेरी व्यवहारिक बुद्धि इस का उत्तर जानती थी।


मेरे मामा का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था। पत्नी का परिवार पर अनुचित नियंत्रण था तथा पति हाशिये पर धकेल दिया गया। संतान ने भी पिता का साथ कभी न दिया। दुर्दैव ने परिवार की सारी सुख-समृधि निगल ली। संतानों की शिक्षा, उन की शादियाँ , कारोबार कुछ भी संतोषजनक नहीं था। और फिर एक दिन परिवार ने मेरे मामा को एक प्रकार से अलग कर दिया। अपना बनायो अपना खायो। जीर्ण शीर्ण से हवेलीनुमा पुश्तैनी मकान की निचली मंजिल की अँधेरी कोठरी में वो अपने जीवन के अन्तिम चरण के दिन गुजारने लगे। रिश्तेदारों अपनी सामर्थ्येनुसार सहायता की परन्तु "यहाँ सब के सर पे सलीब है' के नियम के अंतर्गत कौन कितने दिन सहायता कर सकता है। तो कभी कोई तो कभी कोई, उन के दिन, सप्ताह या महीने का प्रबंध कर देता। कभी शहर में सब से अधिक फैशन करने वाला आज रिश्तेदारों या मित्रों के दिए कपडों से गुजरा करता । महीने दो महीने में वो अपनी छोट्टी बहन के पास सहायता के लिए आ जाते और वो अपनी योग्यता अनुसार उन की सहायता कर देती।


और इस अनुकम्पा ने कब 'छोट्टी' को 'आप' बना दिया, शायद किसी को पता ही नहीं चला।