Sunday, June 29, 2008

सत्यजीत रे !

सत्यजीत रे की कोई फ़िल्म तो अभी तक नहीं देख पाया हूँ, परन्तु इस बार उन की लिखी कहानियाँ पढने को मिलीं। मूलत: बांग्ला में लिखी यह लघु कहानियाँ प्रभात गुप्त द्वारा हिन्दी में अनुवादित हैं। कुल सात कहानीयों की कोई दो सौ पृष्ठों की पुस्तक मैंने दो बैठकों में पूरी कर ली थी।


जीवन के अन्तिम पढाव पर आस्कर की घोषणा के बाद ही भारतीय मीडिया की नजरों में आए रे , फ़िल्म निर्माता होने के साथ साथ एक उत्कृष्ट चित्रकार और लेखक भी थे शायद ही अधिक लोग जानते होंगे। खैर, इस कहानी संग्रह की बात करें तो सभी कहानियाँ रोचक तथा एक विशेष आकर्षण से भरीं थी। आलौकिक शक्ति, मनोविज्ञान, सत्यान्वेषी बुद्धि, रहस्य तथा रोमांच से गुथी विभिन्न कथाएँ पाठक को पुस्तक रखने नहीं देतीं। बातिक बाबु, हंसने वाला कुत्ता और जासूस फेलुदा की सोने का किला तो निश्चित रूप से सुंदर रचनाएँ हैं।


सत्यजित रे द्वारा निर्देशित / निर्मित कुछ फिल्में पहले से ही मेरी सूचि पर थी परन्तु इस कहानी संग्रह ने मेरी उस उत्कंठा को उबार ही नहीं दिया बल्कि उस सूचि में उन के द्वारा रचित और रचनायों को भी जोड़ दिया है।


4 comments:

rakhshanda said...

really...वो महान थे, ऐसे लोग बहुत कम इस दुनिया में पैदा होते हैं...

Shiv Kumar Mishra said...

एक लेखक के तौर पर सत्यजीत रे की गिनती बहुत ही अच्छे लेखकों में होती है. ये कहना कि जीवन के अन्तिम दिनों में ऑस्कर पाने के बाद भारतीय मीडिया की नजरों में आए, सही नहीं है. सत्यजीत रे न सिर्फ़ एक महान फिल्मकार और अच्छे लेखक थे, बल्कि एक अच्छे संगीतकार, अच्छे पेंटर और न जाने क्या-क्या थे. रबिन्द्रनाथ ठाकुर के बाद शायद बंगाल के सबसे प्रतिभावान और महान व्यक्ति.

उनकी बांग्ला फिल्में जरूर देखिये. आपको पता चलेगा कि फिल्मों के जरिये ऐसी अद्भुत स्टोरी टेलिंग बहुत कम लोग कर पाते हैं.

chavannichap said...

tathyon mein sudhar karen.satyajit ray ko oscar ke pahle se log jante hain.apne agyan ko satya na manen.
http://www.chavannichap.blogspot.com/

Praney ! said...

Rakshanda: Padarpan key liye dhanyawad, aur hardik swagat.

Mishra Ji Aur Chavanni: Aap ka hardik swagat aur tippani ke liye dhanywad.

Lagta hai mere likhne mein kuch kammi rah gayee aur aap dono he galat samaj baithe (ise main apni bhool he manta hoon). Yahaan mera udeshaya Bhartiye Media par katakshh karna tha jo videshi manyata ko he variyata deta hai. Mujhe yaad hai ki Oscar ghoshna ke baad he Bharat ke rashtriye media ne unhe mahatav dena shuru kiya tha, us se purv shaayad he kisi gair-bangla patr mein woh dikhaye dete the. Maine kahin bhi Bhartiye 'Janta' shabad ka prayog nahin kiya.

Chavanni ji kripya punn post paden aur jara bina gusse ke :)

Aaap jaise mitre meri kami ko ingit karte rahenge, isi prarthana ke saath, kripya punn padariye.