Sunday, October 12, 2008

'कूल' युवा !

यह लेख मैं मोटोरोला 'युवा' मोबाइल फ़ोन के उस नवीनतम विज्ञापन को समर्पित करना चाहता हूँ जिस में कक्षा में पढ़ा रहे एक शिक्षक का उपहास किया गया है। सदियों पुरानी घिसी पिटी भारतीय (कृपया यहाँ 'इंडिया' पढ़ें) संस्कृति को चमचमाती सुनहरी पन्नी में लिपटी अमेरिकी संस्कृति (कृपया यहाँ 'कल्चर' पढ़ें ) के समकक्ष खड़ा करने के कुछ लोगों के प्रण के निमित्त यह एक अन्य भगीरथ प्रयास हैं।


अपने बाल्यकाल में अंग्रेजी फिल्मों में जब किसी कक्षा का चित्र देखता था तो बहुत आश्चर्य होता, किस प्रकार विद्यार्थी अपने शिक्षक की उपस्थिति को अनदेखा कर अपने मन की करते थे और शिक्षक एक भोंदू जैसे उन विद्यार्थियों की उपस्थिति को अनदेखा कर श्यामपट पर लिखते रहने का अपना कर्म काण्ड पूर्ण करता रहता। केवल इतना ही नहीं बल्कि इस से भी बढ़ कर शिक्षक के सामने ही छात्र अपनी सहपाठी छात्रा को अपने प्रेम का प्रमाण उस के अधरों पर भी दे देता और देता रहता। इसी तरह की कुछ पावन भावना विद्यार्थी और शिक्षक के बीच में भी देखी जा सकती थी। उस समय वोह सब देख कर मुझे अपने पिछडेपन का तीव्र एहसास होता ठीक उसी तरह जिस प्रकार बीजिंग ओलोम्पिक में चीन के पदक देख किसी भारतीय को होता है। किस प्रकार अमेरिका ने समाज में सारे भेद-भाव दूर कर दिए हैं। छोटे बड़े, ऊँचे नीचे का कोई भेद नहीं। हमारे यहाँ तो वही गुरु शिष्य की धकियानुसी कहानियाँ आज भी चलाने की कोशिश की जा रही थी। खैर अब घबराने और शर्मिंदा होने जरूरत नहीं है, हमारी बासी संस्कृति को अत्याधुनिक सैलून में पेंट पोलिश कर अल्पतम कपडों में सजा कर सेक्सी बनाने का पुनीत कार्य अब बड़े बड़े राष्ट्रभक्तों ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। अब हम भी सर उठा कर कह सकते हैं कि हम आधुनिक और शिक्षित हो गए हैं अब हम संस्कार - कुसंस्कार के तुच्छ मापदंडों से ऊपर उठ रहें हैं तथा शेष जल्दी ही उठ जायेंगे।


इसी प्रक्रिया के तहत 'कल हो न हो' जैसी फिल्मों में शाहरुख जैसे नवीन देव बच्चों को अपनी दादी में सेक्सी छवि देखने को कहते हैं, इसी योजना के अंतर्गत एक कक्षा में अध्यापिका छात्र द्वारा एक विशेष परफ्यूम लगाने पर अपना चेतन खो देती है और इसी योजना के परिणाम स्वरुप इस प्रकार के प्रेरक विज्ञापन हमारे सामने परोसे जा रहे हैं। एक युक्ति के तहत ही इस वृति के युवा वर्ग को 'कूल' और 'हाट' बताया जाता है तथा अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर विद्यार्थियों को भोंदू। धोनी भी तो कहता है ना, "पढाई में कुछ ख़ास नहीं था"।


परन्तु यहाँ एक बात बहुत ही रोचक और विचारणीय है। क्या एक भी व्यक्ति ऐसे 'कूल' विद्यार्थी जीवन से निकलने वाले डॉक्टर के हाथ में अपना या अपने किसी प्रिये का जीवन देना चाहेगा या ऐसे ही किसी 'हाट' विद्यार्थी से इंजिनियर बने के हाथ अपना ड्रीम प्रोजेक्ट ? शायद कभी नहीं। एक और बात, जिस प्रकार का चित्र हम एक शिक्षक का प्रस्तुत कर रहें हैं कौन समझदार इस क्षेत्र में अपना जीवन नष्ट करने की सोचेगा और क्यों ?




2 comments:

Anonymous said...

kya fayada?

Arvind Aditya said...

बात में कुछ बात तो है दोस्त.आज का युवा इन बचकानी हरकतों को स्टाइल समझता है और सहपाठी लड़कियों को 'इम्प्रेस' करता है .जो हो भी जाती हैं . ये समस्या मनोवैज्ञानिक है .मौलिक चिंतन और स्वयं के प्रति जागरूक न होना एक वजह है.
कभी मौका मिला तो 'कंडिशनिंग' की बात करेंगे .