परन्तु मैं बात इस के 'स्वर्णभूमि' नाम की विशेषता की नहीं बल्कि हाल में ही इस के प्रवेश द्वार के सामने स्थापित एक कलाकृति की करना चाहता हूँ। यह सुंदर कलाकृति है, हमारे "विष्णु पुराण" से लिए गए "समुद्र मंथन" का दृश्य। विभिन्न रंगों से चित्रित यह विशाल प्रदर्शनी बहुत मनमोहक है। विष्णु पुराण, श्रीमद भागवत और महाभारत में वर्णन के अनुसार जिस समय असुरों और दैत्यों की शक्ति का उत्थान हो रहा था और देवता वैभवहीन हो रहे थे, उस समय भगवन नारायण के निर्देशानुसार देवों ने असुरों से समझोता कर क्षीर सागर को मथ अमृतपान का निश्चय किया। मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को नेती बना स्वयं प्रभु विष्णु कच्छप बन मंदराचल के आधार बने तथा देवगण अमृतपान कर पाये। यह सम्पूर्ण दृश्य हम उस एक कलाकृति में देख सकते हैं जिसे देख वहां से गुजरने वाले लोग मंत्रमुग्द्ध हो ठिठक जातें हैं।
परन्तु जो हैरान करने वाली बात है वो यह कि थाईलैंड की मुख्य जनसँख्या हिन्दु नही अपितु मुस्लिम है । यह मुसलमान अपने पूर्वजों के हिन्दु होने का मान रखते हैं तथा हिन्दु संस्कृति को अपनी ही धरोहर मानते हैं। केवल थाईलैंड ही नहीं बल्कि मलेशिया, कम्बोडिया या इंडोनेशिया में भी हिन्दु संस्कृति का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। कम्बोडिया का अंगकोर वाट और इंडोनेशिया की गरुड़ एयरलाइन्स के बारे में हम सब जानते ही है। इतना ही नहीं सामान्य रूप से भी उन समाजों में रामायण महाभारत के चरित्रों की झलक मिलती है और उन पर चित्रित नृत्य या नाटक वहां कभी भी देखे जा सकतें हैं।
परन्तु यक्ष प्रशन यह है कि क्या ऐसा कोई चित्र या कलाकृति भारत के किसी सरकारी भवन की शोभा बड़ा सकती है ? निश्चित रूप से नहीं। "ऐसा कोई भी प्रयास भारत की 'धर्मनिरपेक्ष' संप्रभुता पर खतरा होगा" मानने वालों की ही भारत में बोलबाला है। यह तथाकथित 'धर्मनिरपेक्ष' लोग ही हैं जिन ने भारत के मुसलमानों को हिन्दु संस्कृति का भय दिखा अपनी दूकान चला रखी है। और इसी कारण ही भारत का अधिकांश मुस्लिम समाज अपने पूर्वजों के हिन्दु होने के बावजूद अपने को हिन्दु संस्कृति से दूर पाता है। क्या कारण है कि जिस हिन्दु संस्कृति से थाईलैंड का मुस्लिम समाज अपने को गौरवान्वित महसूस करता है (कोई भी शर्मसार करने वाली वस्तु थाई समाज ने स्वर्णभूमि हवाई अड्डे पर न लगाई होती) उसी संस्कृति को भारत का मुस्लिम समाज अपने लिए विष मानता है? शायद न भी मानता हो परन्तु कम से कम हमारे देश का वातावरण ऐसा ही मानने को मजबूर करता है।
(चित्रों के लिए विभिन्न छायाकारों का आभार ! )
1 comment:
दक्षिण पूर्व एशिया के राष्ट्रों से क्या हमारी सरकार कोई सीख लेगी. नहीं. यदि भारतीय मुसलमानों को उनकी मूल संस्कृति का आभास होता रहे तो संभव है कि उनमे सहिष्णुता आएगी. आभार.
अरे भाई ये क्या वर्ड वेरिफिकेशन लगा रखा है. इसे हटा दें. टिप्पणी करने से बचेंगे.
http://mallar.wordpress.com
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