मन है कि कभी विराम ही नहीं लेता । अब ये मन है या बुद्धि ये भी कहना कठिन है परन्तु जो भी है लगातार कुछ न कुछ बुनती ही रहती है । ठीक उस सागर की तरह जिस में हर समय लहरें आतीं रहती हैं । कई बार मन चाहता है की ये कुछ देर तो शांत बैठे, परन्तु नहीं । काश कोई बटन होता जिस से मन को सोचने से रोका जा सकता ठीक टीवी के उस विज्ञापन की तरह । परन्तु यह भी तो उसी उन्मुक्त मन की सोच है जिसे मैं लगाम डालना चाहता हूँ।
खैर, आज प्रणय निवेदन के लगभग एक वर्ष बाद इस मन की इच्छानुसार पाथेय कण का निर्माण हो गया है । अब पता नहीं कितना मार्ग तय कर पायगा । देखेगें !

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