Saturday, March 8, 2008

वसुदेव

श्री कृष्ण की जन्मगाथा से हम सभी भली भांति परिचित हैं । महिर्षि नारद तथा अन्य भाविष्यवक्ताओं द्वारा की गई घोषणाओं से भयभीत हो मथुरा के अत्याचारी शासक कंस ने अपनी ही बहन व उस के पति राज्य के धर्माधिकारी वसुदेव की हत्या का प्रयास किया वो भी उन के विवाह के अवसर पर ही। परन्तु वसुदेव की सूझ बूझ से उन दोनों की असामयिक मृत्यु कुछ देर के लिए तो टल गयी लेकिन उन की आने वाली संतानों की प्रसव शैय्या पर ही मृत्यु अवशम्भावी थी। अनेक कथाएँ इन घटनाचक्रों पर लिखी गयीं हैं परन्तु अधिकांश सभी कथाकारों ने देवकी व वसुदेव के विषय में थोड़ा बहुत लिख कर मुलत: श्री कृष्ण पर ही ध्यान केंद्रित किया है।


नरेन्द्र कोहली द्वारा लिखित उपन्यास 'वसुदेव', उन्हीं देवकी वसुदेव की अटल जिजीविषा की कथा है । अपने बच्चों के जरा से कष्ट पर हम सभी किस प्रकार व्यथित हो अपनी सारी क्षमता से वह कष्ट दूर करने का प्रयास करतें हैं और जरा सोचिये देवकी वसुदेव की मनोस्थिति जिन की संतानें उन्हीं की आँखों के सामने कंस के क्रूर हाथों मारीं गयीं वो भी एक दो नहीं अपितु छ:। लगभग बीस वर्षों का यह अतुलीनीय और असहनीय संग्राम, जो अपनी संतानों का बलिदान मांगे किसी साधारण मानस के लिए सम्भव नहीं है। नरेन्द्र कोहली ने यह गाथा केवल आध्यात्मिक पक्ष की न रख आधुनिक सन्दर्भ से जोड़ कर सरल व्यवहार में लिखी है। कहानी द्वापर युग की होने के पश्चात् भी आज की परिस्थितियों से जोड़ी जा सकती हैं। उपन्यास में श्री कृष्ण के जन्म संबंधित घटनाएँ तथा उन के आलोकिक कृत्यों को आज के उन वैज्ञानिक बुद्धि वाले पाठकों को ध्यान में रख कर उकेरा गया हैं जो 'Mythology' और 'Science Fiction' के प्रति अलग अलग दृष्टिकोण रखतें हैं ।

उपन्यास के मध्यांतर पश्चात लगता ही नहीं कि आप कोई ऐतहासिक कथा पढ़ रहे हैं अपितु लगता है आज के ही राजनीतिक व सामाजिक परिवेश का चित्र देख रहे हैं। कंस को प्रसन्न करने के लिए उस के मंत्रियों सहित समाज के बुद्धिजिवियों द्वारा अपनी आत्मा बेच देने का अध्याय आज का ही लगता है। इतना ही नहीं कंस के एक शिक्षा मंत्री के कारनामें, नाम व ब्योरा अनायास ही पाठक के चेहरे पर मुस्कान ला देता है। लेखक ने पूरी क्षमता से समाज को जागृत करने का प्रयास किया है जो अपने वातानुकूलित कक्षों में बैठ देश की अच्छी बुरी दशा पर अपनी राय देतें हैं और स्वयं वोट देना भी शर्म का काम समझतें हैं । देवकी वसुदेव की इस गाथा का एक मात्र और मुख्य संदेश यही हैं कि राष्ट्र की प्रत्येक समस्या का स्रोत, संताप और समाधान राष्ट्र के समाज में ही होता है और समाज के वसुदेव जैसे मनीषियों के बलिदानों से ही देश सुरक्षित व सभ्य रह पाता है। श्री कृष्ण जैसे अवतारों का अवतरण भी इन्हीं मनीषियों की तपस्या का परिणाम होता है न कि कोई स्वाभाविक प्रक्रिया ।

देश व समाज की हर समस्या पर शासक व राजनीति को दोष न दे कर स्वयं अपना धर्म निभाना और फिर उस कर्तव्यपूर्ति पश्चात किसी पुरस्कार की अपेक्षा न करने का संदेश ही संभवत: लेखक का निहित उद्देश्य है ।


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