MGM की कार्टून फिल्में देखें तो कहानी शुरू होने से पहले MGM अपनी क्लिप दिखाती है जिस में एक घेरे में दहाड़ने को तैयार शेर बैठा होता है और वो दहाड़ता भी है परन्तु एक बिल्ली की आवाज़ में. बहुत समय पहले लगभग इसी तरह का एक टीवी विज्ञापन खांसी ठीक करने वाली गोली का था जिस में एक शेर किसी मरघिल्ली बिल्ली की म्याऊं म्याऊं करता था.
जब भी हमारे प्रधानमंत्री कहीं भाषण देते सुनायी देतें हैं यह किस्से मुझे याद आ जातें हैं. कुछ दिन पहले उन्होंने सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को संबोधित किया था और अब कश्मीर में ! बहुत कष्ट होता है उन को बोलते सुन कर ! मेरा उन से कोई राजनैतिक मतभेद नहीं है परन्तु इतनी तो इच्छा होती ही है कि इतने बड़े देश का अग्रसर कोई प्रभावशाली व्यक्तित्व होना चाहिए. स.मो.सि. की दब्बू आवाज़ से लगता है जैसे कोई निराश महिला प्रसूति गृह से खाली गोद लेटी हुयी लौटी हो. एक तो हम पहले ही आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टवाद आदि आदि से पीड़ित हैं और फिर पीड़ित लीडर की पीड़ित आवाज़ में अपनी पीड़ा उस दुनिया को सुनाने की भोंडी कोशिश करते हैं जिसे हमारी पीड़ा की कोई पीड़ा नहीं है. मेरी अमरीकी लीडरों के प्रति कोई विशेष श्रद्धा नहीं है परन्तु मैं उन के भाषण देने की कला से अवश्य प्रभावित हूँ. अपनी बात से जनता के दिल पर दस्तक देने में वो लोग सक्षम हैं. ९/११ के बाद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के मलबे पर से जार्ज बुश का कहना "we will bring those terrorists to justice" मुझे आज भी याद है. अब उस बात में वो कितना सफल हुए यह चर्चा का विषय हो सकता है पर एक बार तो बुश ने अपनी जनता के दिल में उत्साह भर ही दिया. क्या हमें अपने किसी लीडर का ऐसा कोई उत्साहवर्द्धक उदघोष याद है ? मुझे तो नहीं ! किसी और की अंग्रेजी में लिखी लिखाई चिठ्ठी सर झुका कर पढ़ डालने की उबाऊ औपचारिकता में लोग उबासियाँ ही लेते हैं प्रेरणा नहीं !
हर किसी के आगे चाहे पकिस्तान हो या बांग्लादेश या चीन या फिर अब नक्सली, बार-बार शांति (यह शांति नहीं कायरता है) की दुहाई दे दे कर उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि यह सिंह अंतर्नाद ही कर सकता है सिंहनाद नहीं ! किसी भी पार्टी का हो परन्तु एक सशक्त, प्रभावशाली और सक्षम नेता हमें चाहिए जो धारा को अपने राष्ट्र की आवश्यकता के अनुसार मोड़ सके न कि उस धारा के साथ बहता जाये.
सुनिए.................! टीवी पर शेर दहाड़ने वाला है.
4 comments:
आप ने बात तो सही कही, लेकिन जब कोई अपनी मर्जी से बोलने दे तब ना.... वेसे भी नाम सिंह रख लेने से........
भगवान राम और कृष्ण दोनो सॉफ्ट स्पोकन पर टफ लीडर्स में आते हैं। मौके पर इन्होने हुंकार भी की है।
कृष्ण का - "जन्जीर बढ़ा, अब साध मुझे; हां हां दुर्योधन बांध मुझे"; की घोर गर्जना अब भी रोमांच पैदा करती है।
पर ये व्यक्ति की छुद्रता से परे लोग थे।
राजनितिक बिल का अभाव है
....सिंह-गर्जन कहाँ से होगी .......
रहीम चुप ह्वै बठिये
देखि दिनन के फेर ........
सुन्दर लिखा ......
समोसि प्रम के बारे में आपके अवलोकन से पूर्ण सहमति है। भारत का प्रधानमंत्री अपने कृतित्व का सिंह होना चाहिये नाम में क्या रखा है?
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