चेन्नई के एक विधि कॉलेज में हाल ही में हुए छात्रों के जातीय संघर्ष का विडियो देख मैं सन्न रह गया। कारण चाहे जो भी रहा हो, अपराधी या पीड़ित चाहे किसी भी जाति का थे वो दृश्य बहुत ही हृदयविदारक थे। मैं अपने को काफी मजबूत हृदय का मानता हूँ और सामान्यत: रक्त देख कर मेरा मन विचलित नहीं होता परन्तु इन दृश्यों को मैं पूरा नहीं देख पाया। आधे में ही मुझे पानी पीने को उठाना पड़ा। कोई भी सुशिक्षित (वो भी विधि के छात्र) व्यक्ति इतना निर्मम, क्रूर और जंगली हो सकता है, विश्वास नहीं होता। बर्बरता में आदमयुग को भी पछाड़ दिया भारत के इन होनहार भविष्य के वकीलों ने।
पिटने वालों में अगर भारतीय छात्रों की जगह आतंकवादी होते तो शायद मुझे तसल्ली होती परन्तु दुःख तो इस बात का है कि यहाँ तो दोनों पक्ष ही 'भारत का भविष्य' थे। आपस में ही लड़ मरने वाले इन भारतीय तरुणों के लिए किसी ऐ के ४७ वाले आतंकवादी की क्या जरूरत है ? भारत को तबाह करने के लिए ऐसे दो चार कॉलेज और उन के ऐसे विद्यार्थी ही पर्याप्त हैं। इस पशुवृति वाले विद्यार्थी आगे चल न्याय अन्याय का विचार कर समाज का उत्थान करेंगे या दिन रात ऐसी ही घटनायों की कामना और सहयोग कर अपनी चांदी कूटने की जुगाड़, अंधे को भी दिखायी देता है। कॉलेज के नाम मात्र के लिए वहशी कुत्तों की तरह लड़ने वाले यह होनहार अपने नाम तक को तो सार्थक कर नहीं सकते यह तह है।
इस शर्मसार करने वाली घटना का दूसरा पक्ष चेन्नई की पुलिस है। पुलिस के दलबल के सामने ही छात्र हत्या का प्रयास करते रहे और पुलिस अधिकारी संतोष की साँस लेते शायद प्रिंसिपल के फ़ोन की प्रतीक्षा करते रहे। पर इन पुलिस वालों को भी अपराधी क्यों ठहराना, इन लोगों का भी कोई दोष नहीं । आख़िर यह लोग भी तो ऐसे ही कॉलेज स्कूलों की पैदाइश हैं। लड़ने वाले इन विद्यार्थियों का भविष्य का चरित्र हम इन पुलिस अधिकारीयों में साफ साफ देख सकते हैं। 'देश और समाज जाए भाड़ में, मेरा घर पूरा होना चाहिए' इन का धेयय रहने वाला है।
आखिरकार इस सब का दोषी कौन है ? हमारे स्कूल कॉलेज में क्या शिक्षा दी जा रही है? इस की चिंता शायद किसी को नहीं है। माता-पिता को पैसे कमाने वाली मशीन चाहिए, राजनीतिज्ञों को शिक्षा को भगवेकरण से बचाने की चिंता है और शिक्षाविदों को राजनीतिज्ञों की चापलूसी कर अपना घर चलाने की। एक ही चक्र घूम रहा है और इस चक्र में हमारी भावी पीढियां अफसर तो बन रहीं हैं पर मानव नहीं।
( हालाँकि मैं सलाह तो नहीं देता पर अगर कोई देखना चाहे तो ये शोर्य गाथा यहाँ उपलब्ध है। )
